Thursday, October 8, 2020

मवईया का लाल-हरा सिघाड़ा मंडियो मे मचायेगा धूम

आलोक गौड़ 
नई सोच समाचार 
फतेहपुर।मलवा विकास खंड के मवइया गांव को केला एवं गन्ना की अच्छी पैदावार के लिए जाना जाता है लेकिन यहा का सिघाड़ा मंडियो मे धूम मचाने को तैयार है।सिघाड़े की माग नवरात्रि मे खूब होती है।सिघाड़ा उत्पादक किसान इससे पहले ही सिघाड़े को तैयार करने मे जुटे है।यहा के किसान परम्परागत धान ,गेहू की खेती छोड मुनाफा वाली खेती मे विश्वास रखते है इसी का नतीजा है की मुख्यमंत्री उस गाव के प्रगतिशील किसान हरिकृष्ण अवस्थी को सम्मानित कर चुके है।
मवईया मे शाहजहापुर के शिवम कश्यप अपने पिता अरविंद के साथ 27हजार रुपए वार्षिक किराये पर तालाब लेकर सिघाड़ा की हरी व लाल किस्म की अच्छी उपज के लिये ड़टे हुये है।साढे तीन बीघा मे तैयार सिघाड़ा बाजार व अन्य जनपदो की मंडियो मे दस दिन बाद पहुचेगा।इनके लिये सिघाडा उत्पादन मुनाफे की खेती साबित होगा ऐसी उम्मीद है।
किसान शिवम कश्यप,अरविंद,अमन ने बताया एक एकड़ मे 40हजार की कुल लागत आती है जिसमे 40 क्विंटल तक का उत्पादन होता है।यह सिघाड़ा 60से 70हजार तक मे बिक जाता है।फुटकर मे सिघाडा 40रुपए प्रति किलो तक बिकता है।व्रत एवं त्योहारो मे सिघाड़े की खाततौर पार माग अधिक होती है।और सिघाड़ा दुर्गा पूजा से एक सप्ताह पहले ही बाजार तक पहुच पाता है जिससे दाम सही लगते है और ब्रिकी भी अच्छी होती है इसी का लाभ सिघाड़ा उत्पादक किसान को मिल पाता है।
मवईया मे शिवम के सिघाड़े मे सितम्बर के अंतिम सप्ताह मे फूल आ गये थे अब फल भी लग रहे जो दस दिन मे तोडने लायक हो जायेगे।स्वास्थ्य के लिये सिघाड़ा लाभदायक होता है।मैगनीज अवशोषक करने मे सक्षम है।सिघाड़ा कच्चा एव उबाल के खाया जाता है।पका सिघाडा अधिक मूल्य मे बिकता है जिसका आटा तैयार किया जाता है जो 80से100 रुपये प्रति किलो तक बिकता है।
सिघाडा उत्पादक किसान शिवम कश्यप ने बताया वह खुद बेल तैयार करते है,बीज भंडारण भी खुद ही करते है उन्हे अपने बीज पर ही भरोसा होता है।बताया दो विस्वा पका छोडा गया सिघाडा को मटके मे रखा जाता है जो अंकुरण हो जाने पर 3 फुट तालाब मे पानी हो जाने पर डाल देते है अंकुरण होने पर बेल अलग अलग काट लेते है।जून,जुलाई माह मे लाठी की सहायता से इसे तालाब की मिट्टी मे गाड़ते है और ऐसे पौध तैयार होती है।सितम्बर माह मे फूल आते है और अक्तूबर नवरात्रि से पहले फल तोडाई शुरु हो जाते है।शिवम ने बातया वह सिघाड़े को नाव की सहायता से तोडते है,इसमे दो प्रकार के प्रमुख रोग लगते है कंदुआ और सरई जिससे बेल सडने लगती है जिससे बचाव के लिये कीटनाशको का छिड़काव करते है।
बादा,प्रयागराज,गोपीगंज यहा की मुख्य मंडिया है जहा वह सिघाड़ा बोरे मे भरकर लाद के ले जाते है।शिवम के पिता अरविंद कहते है तालाब सूखने पर किसी सरकारी योजना से कोई अनुदान नहीं मिलता है।किसी सरकारी योजना के तहत वैज्ञानिक जानकारियां भी नहीं मिल पाती हैं।पैतृक धंधा है,पर इसके तौर तरीके आज भी सालों पुराने हैं।
प्रगतिशील किसान हरीकृष्ण अवस्थी कहते है सिघाड़ा उत्पादन मे माहिर खास जाति मछुआरो,कहारो का रुझान पुन:इस ओर बड़ रहा है।यदि सरकार अत्याधुनिक प्रजाति विकसित करे व बीज अनुदान पर दे और तालाबों में पानी भराने की सुविधा मुहैया कराए तो सिंघाड़े उगाने वालों को दिन बहुर जाएगे।

No comments:

Post a Comment