Saturday, March 9, 2019

गावो व शहरो के बीच भटकी युवा पीढी,वर्तमाँन मे विकास के परिदृश्य

गावो और शहरो के बीच खाई मे भटकी युवा पीढ़ी-आलोक गौड

समिति के जिला प्रवक्ता आलोक गौड

फतेहपुर।‘युवा’ समाज का वह हिस्सा है,जिसके द्वारा किसी देश का भविष्य निर्मित होता है।उसकी उम्र के साथ-साथ उसकी आँखों में बड़े-बड़े सपनों की संख्या भी बढ़ती जाती है।इन्हीं सपनों की पूर्ति हेतु उसे जीवन में कई बार बड़े-बड़े जोखिम भी उठाने पड़ते हैं।संभव-असंभव के संशय त्यागने पड़ते हैं। ऐसे विचार युवा विकास समिति जिला प्रवक्ता आलोक गौड़ के हैं उन्होंने युवाओं  को जागरूक कर  सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लगा रखा है सामाजिक संगठन युवा विकास समिति द्वारा निरंतर समाज सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट भूमिका का निर्वाहन किया जा रहा है उन्होंने कहा स्वामी विवेकानंद जी का सुविचार है कि संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है,असंभव से भी आगे निकल जाना।उन्होंने देश के युवाओं को सम्बोधित करते हुए कहा था –युवाओं उठो, जागो और उदेश्य प्राप्ति के पहले मत रुको। विवेकानन्द जी के ये विचार देश की युवा पीढ़ी के लिए ही नहीं, अपितु राष्ट्र निर्माण में भूमिका निभाने वाले महापुरुषों के लिए भी प्रेरणास्रोत रहे हैं। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, आजाद, मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, कल्पना चावला, सानिया मिर्जा, पी.वी सिन्धु, गीता फोगाट तथा मानुषी छिल्लर आदि ने समाज को बेहतर बनाने और उसे नए शिखरों पर ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
वर्तमान भारत को ‘युवा भारत’ कहा जाता है, क्योंकि हमारे देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा युवा पीढ़ी ही है। जिसमें आधे से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। गाँव में रहने वाले युवाओं तथा शहरी युवा-वर्ग के बीच रहन-सहन, शिक्षा, परिवेश, क्षमता आदि सभी स्तरों पर बड़ा भारी अंतर दिखाई देता है। 13 से 35 वर्ष की उम्र वाली पीढ़ी यदि सुंदर चारित्रिक दृढ़ता, नैतिक मूल्यों, मानसिक, धार्मिक व आध्यात्मिक शक्तियों से परिपूर्ण होगी, तो नि:संदेह ही एक सुंदर-स्वस्थ तथा विकसित राष्ट्र की कल्पना की जा सकती है। लेकिन ग्रामीण और शहरी वर्गों में बंटा यह समाज असमानता की एक ऐसी धुरी पर टिका है। जहाँ गाँवों की स्थिति शहरों की तुलना में अधिक दयनीय है। ग्रामीण युवाओं को मूल्यरहित शिक्षा, बेरोजगारी, उचित मार्गदर्शन का अभाव, टेलीविजन/इंटरनेट की ग्लैमरस दुनिया के शार्टकट्स आदि ने भटकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। साथ ही गाँवों और शहरों के बीच पसरी खाई ने युवाओं में एक दुराव की स्थिति बना दी है। गांवों में बसने वाला जब शहरी वातावरण के रंग-ढंग जान लेता है तो वह वापिस गाँव लौटना नहीं चाहता। ऐसे में शहर में पला-बड़ा युवा गाँवों के विकास की सुध क्यूँ लेगा? शिक्षा की बुनियादी और व्यावहारिक उपयोगिता की स्थिति गाँवों के साथ-साथ शहरों में भी त्रस्त दिखाई देती है। इन युवाओं में नकारात्मकता का स्तर तेजी से बढ़ता जा रहा हैं, जिससे वे शीघ्र ही अपना संयम खो देते हैं। जल्दी से जल्दी उच्च पद, पैसा-शोहरत पाने के लिए गलत काम और शोर्टकट्स लेते हुए भी नहीं कतराते। ऐसी विपरीत परिस्थितियों के बीच फंसी युवाओं की बड़ी  संख्या गुमराह हो हिंसात्मक कार्यों, उपद्रवों, हड़तालों, अपराधों, नक्सलवाद, आतंकवाद आदि रास्तों पर निकल पड़ती है। जो किसी भी देश-समाज के लिए एक बड़े खतरे का कारण हैं। इस दिशाहीन विशेषकर गांवों में बसने वाली तथा पलायन से हताश युवा पीढ़ी को सही मार्ग पर लाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए गए हैं? उन्हें बुनियादी व रोजगार युक्त शिक्षा देने के लिए कौन-सी योजनाएं बनाई गई हैं? गाँवों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए सरकार द्वारा क्या-क्या योजनाएं उपलब्ध कराई गई हैं, और किन योजनाओं का युवाओं ने सफलतापूवर्क उपयोग करके गांवों की स्थिति में सुधार किया है? गाँवों में स्वच्छता एवं पर्यावरण संरक्षण हेतु युवाओं ने क्या बड़े बदलाव किए हैं? किसानों की फसल से जुड़ी सरकारी सुविधा तथा नई तकनीकों के इस्तेमाल की जानकारी में युवा कैसे भूमिका निभा रहे हैं? युवा विकास समिति समाजसेवी संगठन के माध्यम से युवा कैसे ग्राम विकास की स्थिति में सुधार कर रहे हैं? साथ ही गाँवों की समस्याओं को लेकर युवाओं की सजग भागीदारी कितनी सफल रही है? गांवों में युवाओं का एक बड़ा तबका बेशक असुविधाओं एवं आर्थिक कमजोरी के कारण पीछे रह जाता हो, लेकिन उन्हीं में से कुछ होनहार ऐसे भी निकलते हैं जो अपने समाज ही नहीं, देश को भी गौरवान्वित करते हैं । युवा-युवा के बीच की खाई को पाटकर उन्हें जागरूक कर कैसे अपने संगठनों का हिस्सा बनाकर रोजगार के अवसर दे रहे हैं? आदि इन सभी प्रश्नों के माध्यम से मैनें ग्रामीण विकास में युवाओं की भूमिका आंकने का प्रयास किया है।

No comments:

Post a Comment